भारत का पूर्वोत्तर भाग अपने प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विविधता और भौगोलिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। इसी क्षेत्र में बसा है एक अत्यंत सुंदर और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य — अरुणाचल प्रदेश। यह राज्य हिमालय की तलहटी में स्थित है और अपने घने जंगलों, ऊँचे पहाड़ों, बहती नदियों और विविध जलवायु के लिए जाना जाता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे अरुणाचल प्रदेश के भौगोलिक पहलुओं के बारे में।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ब्रिटिश शासन काल में अरुणाचल प्रदेश को “नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (NEFA)” के नाम से जाना जाता था। 1972 में इसे केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिला और अंततः 20 फरवरी 1987 को यह भारत का पूर्ण राज्य बन गया।
2. भौगोलिक स्थिति
अरुणाचल प्रदेश की स्थिति भारत के अत्यंत पूर्वी छोर पर है। यह राज्य 26°28′ उत्तरी अक्षांश से 29°30′ उत्तरी अक्षांश और 91°30′ पूर्वी देशांतर से 96°30′ पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। इसका क्षेत्रफल लगभग 83,743 वर्ग किलोमीटर है, जो इसे पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा राज्य बनाता है।
- राजधानी: ईटानगर
- आधिकारिक भाषा: अंग्रेजी
- कुल जिले: 15
- गांव: लगभग 3862
- कस्बे: 12
3. सीमाएं और पड़ोसी राज्य
अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं कई देशों और भारतीय राज्यों से जुड़ी हुई हैं:
- उत्तर में: चीन (1030 किमी लंबी सीमा)
- पूर्व में: म्यांमार (440 किमी)
- पश्चिम में: भूटान (160 किमी)
- दक्षिण में: असम और नागालैंड
यह सीमा स्थिति इसे भारत की रणनीतिक सुरक्षा में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है।
4. भौगोलिक स्वरूप
अरुणाचल प्रदेश की भौगोलिक रचना अत्यंत विविध है। इसे कुल छह प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा गया है:
- तिराप जिला
- पश्चिम कामेंग जिला
- ऊपरी, मध्य और निचले पर्वतीय बेल्ट
- राज्य की तलहटी
यहाँ की ज़मीन ज्यादातर पहाड़ी और पर्वतीय है, जहाँ गहरी घाटियाँ और तीव्र ढलानों वाली भूमि पाई जाती है।
5. नदियाँ और जल स्रोत
राज्य की पर्वतीय संरचना के कारण यहाँ कई नदियाँ बहती हैं, जो प्रदेश को जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत भी हैं। प्रमुख नदियाँ:
- सियांग
- सुबनसिरी
- लोहित
- कामेंग
- नोआ-डिहिंग
- तिराप
- दीबांग
- कामला
इन नदियों के कारण राज्य में कई सुंदर घाटियाँ और जैवविविधता संपन्न क्षेत्र बने हैं।
6. जलवायु और मौसम
अरुणाचल प्रदेश की जलवायु इसकी ऊँचाई के अनुसार बदलती रहती है:
निचली क्षेत्र (फुटहिल्स)
- गर्मी: 30–40°C
- मानसून: 22–30°C
- सर्दी: 15–20°C
मध्यम क्षेत्र
- अधिक ठंडा और नमीयुक्त
ऊँचाई वाले क्षेत्र (अल्पाइन)
- सर्दियों में बर्फबारी
- अत्यंत ठंडा तापमान (0°C या उससे कम)
वर्षा
- मई से सितंबर तक
- औसतन 300 सेमी वर्षा, कुछ क्षेत्रों में 450 सेमी तक
यह राज्य मेघालय के बाद सबसे अधिक वर्षा पाने वाला राज्य है।
7. जिले और प्रशासनिक विभाजन
राज्य में 15 जिले हैं:
- लोहीत
- ऊपरी सुबनसिरी
- निचली सुबनसिरी
- चांगलांग
- दीबांग घाटी
- निचली दीबांग घाटी
- पश्चिम कामेंग
- पूर्वी कामेंग
- पापुमपारे
- ऊपरी सियांग
- पश्चिम सियांग
- पूर्वी सियांग
- कुरुंग कुमे
- तवांग
- तिराप
इन जिलों का प्रशासनिक ढांचा राज्य की भौगोलिक विविधता को समुचित रूप से प्रबंधित करने में सहायक है।
8. वनस्पति और जीव-जंतु
अरुणाचल प्रदेश का लगभग 80% क्षेत्र वनाच्छादित है। यह राज्य हिमालयी क्षेत्र में जैव विविधता की दृष्टि से सबसे समृद्ध है।
प्रमुख वन प्रकार:
- उष्णकटिबंधीय वन
- उपोष्ण कटिबंधीय वन
- समशीतोष्ण वन
- बाँस के वन
- घास के मैदान
- अल्पाइन वन
प्रमुख जीव-जंतु:
- टाइगर
- तेंदुआ
- हाथी
- हिम तेंदुआ
- गार (भारतीय बाइसन)
- स्लो लोरिस
- वाइट-विंग्ड वुड डक (दुर्लभ पक्षी)
- रेसस मकाक
- ट्रैगोपान
- मार्बल्ड कैट
- गोल्डन कैट
- पिग-टेल मकाक
राज्य में लगभग 5000 पौधों की प्रजातियाँ, 85 स्तनपायी, 500 पक्षी, तथा कई कीट और सरीसृपों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
9. जनजातियाँ और पारंपरिक जीवनशैली
अरुणाचल प्रदेश में लगभग 26 प्रमुख जनजातियाँ और अनेक उपजनजातियाँ निवास करती हैं। इनका जीवन वन आधारित संसाधनों पर निर्भर है। बांस, लकड़ी, औषधीय पौधे आदि इनकी आजीविका के साधन हैं।
इन जनजातियों की भाषा, संस्कृति, वेशभूषा और रीति-रिवाज़ इसे सांस्कृतिक रूप से अत्यंत समृद्ध बनाते हैं।
10. पर्यटन की दृष्टि से विशेष
अरुणाचल प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का प्रतीक है। यहाँ कई दर्शनीय स्थल हैं:
- तवांग मठ — भारत का सबसे बड़ा बौद्ध मठ
- सेला पास
- बोमडिला
- जिरो वैली
- नामदफा राष्ट्रीय उद्यान
बर्फबारी, घने जंगल, नदी घाटियाँ और जनजातीय उत्सव पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
निष्कर्ष
अरुणाचल प्रदेश न केवल भारत के भूगोल का एक अनमोल हिस्सा है, बल्कि यह प्राकृतिक संसाधनों, जैवविविधता और सांस्कृतिक धरोहर से भी भरपूर है। यहाँ की पर्वतीय संरचना, जलवायु विविधता और समृद्ध वन्य जीवन इसे अनूठा बनाते हैं। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण इसका रणनीतिक महत्व भी अत्यधिक है।
भारत के इस पूर्वी कोने में बसे इस राज्य को समझना, जानना और संरक्षित करना न केवल भौगोलिक दृष्टि से आवश्यक है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विविधता का भी एक अद्भुत उदाहरण है।

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