मोहम्मद रफ़ी साहब
दिल्ली के एक छोटे से गाँव में एक गरीब गायक, मोहम्मद रफ़ी, का जन्म हुआ था। वह छोटे से उम्र से ही गाने में रुचि रखता था और उसकी आवाज़ में एक अलग ही जादू था। उसके पिता भी उसकी गायकी के प्रति समर्थ थे और उन्होंने उसे अपनी मेहनत से संगीत की पढ़ाई कराई।
मोहम्मद रफ़ी की मेहनत और तलंत की पहचान जल्द ही गाँव के बाहर फैल गई। उसके गाने के जादूगरी बोल सुनकर लोग उसके दीवाने हो गए। एक दिन, एक प्रसिद्ध संगीतकार उसे सुनकर आश्चर्यचकित हो गए और उसे मुंबई लाने का फैसला किया।
मुंबई पहुंचकर, रफ़ी ने संगीत इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई। उसकी आवाज़ के जादूगरी ने सभी को मोह लिया और वह शीघ्र ही सबसे प्रसिद्ध गायक बन गए। उनके गाने हर दिल को छू जाते थे और उनके दर्शक उन्हें अपना दिल का राजा मानते थे।
मोहम्मद रफ़ी ने अपने जीवन में कई मशहूर संगीतकारों के साथ काम किया और उनके गाने हर तरफ़ धूम मचा दी। उनकी आवाज़ ने उन्हें गायकी के ताज़ पर बिठा दिया।
हालांकि, रफ़ी के सफलता के पीछे उनकी मेहनत, ईमानदारी, और संगीत में पूर्ण विश्वास का भी एक बड़ा योगदान था। वे अपने गानों में संदेश और भावनाएं समाहित करते थे और सभी के दिलों में एक स्थान बना लिया।
आज भी, मोहम्मद रफ़ी के गाने हर वयस्क और बच्चे के दिलों को छूते हैं और उनकी आवाज़ का जादू हर वक्त ज़िंदा रहेगा।
ओ दुनिया के रखवाले गाते हुए गले से निकल आया खून
ओ दुनिया के रखवाले गाते हुए गले से निकल आया खून। इस सुर्मई आवाज़ के पीछे छुपी एक दर्दनाक कहानी है, जिसे नौशादनामा नामक बायोग्राफी में मोहम्मद रफ़ी साहब के जज्बे का खुलासा किया गया है।
उस समय, फिल्म ‘बैजू बावरा’ के लिए गाने “ओ दुनिया के रखवाले” की रिकॉर्डिंग को हाई स्केल में करने का दृढ निर्धारण किया गया था। इसलिए मोहम्मद रफ़ी साहब ने अनेक दिनों तक लगातार घंटों रियाज किया था, ताकि उनकी प्रदर्शन क्षमता और प्रस्तुति शुद्ध और दर्शकों को मोहक लगे।
जब गाने की अंतिम रिकॉर्डिंग हो रही थी, तो बड़ी दुर्भाग्यवश, मोहम्मद रफ़ी साहब के गले से खून रिस रहा था। वे इतने जज्बे से गाने में डूब गए थे कि उन्हें नहीं पता चला कि उनके गले से खून रिस रहा है।
इस गाने के बाद, मोहम्मद रफ़ी साहब ने खुद को राजसी अस्पताल में भर्ती करवाया और उनके गले के चोट का इलाज किया गया। यह घाव इतना गहरा था कि वे कई महीनों तक किसी भी गाने को गाने में असमर्थ हो गए।
एक दिन, एक जेल कैदी ने अपने आख़री पलों में इस गाने को सुनने की आख़री इच्छा जाहिर की। जेल के जेलर ने उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए एक रिकॉर्डर लाया और मोहम्मद रफ़ी साहब के इस गाने को उस रिकॉर्डर पर बजाया। जेल कैदी ने अपने आख़री पलों में रफ़ी साहब के दिव्य स्वर से अपना आख़री सफर समाप्त किया।
इस कथा से स्पष्ट होता है कि मोहम्मद रफ़ी साहब के गाने की ताक़त, उनके जज्बे का असर और उनके गायकी का महत्व किसी भी सीमा से परे है। उनके गाने ने लाखों दिलों को छुआ और आज भी उनकी आवाज़ का जादू हमें भावविभोर करता है। मोहम्मद रफ़ी साहब का ये साया हमेशा हमारे साथ रहेगा, उनकी आवाज़ और गाने हमेशा हमारे दिलों में बसा रहेगे।
मौत के बाद सामने आया दरियादिली का किस्सा
रफ़ी साहब के निधन के बाद एक फकीर उनके घर तक पहुंचा और रफ़ी साहब से मिलने की जिद करने लगा। परिवार वालों ने उसे बैठाकर उसकी इच्छा का कारण पूछा। फकीर ने सरलता से बताया कि रफ़ी साहब ने उनके घर का हर महीने कश्मीर की यात्रा का खर्च भेजा करते थे, लेकिन कुछ महीनों से खर्च भेजना बंद हो गया है।
रफ़ी साहब के सच्चे भक्त और संगीत प्रेमी होने के नाते, उन्होंने फकीर के शब्दों को समझा और उन्हें उनके घर बुलाया। रफ़ी साहब के सेक्रेटरी ने इस बात की पुष्टि की कि रफ़ी साहब बिना किसी को बताए कई लोगों का आर्थिक सहारा बनते थे और उनकी मदद से अनेक लोगों को उनकी रोज़ी-रोटी की चिंता नहीं होती थी।
रफ़ी साहब के इस नैतिकता और समर्पण के कारण, वे न केवल एक उत्कृष्ट गायक बल्कि एक मानवता के समर्थन में सदैव सक्रिय रहे। उनका अद्भुत संगीत और सच्चा दिल सदैव लोगों के दिलों में बसा रहेगा और उनकी यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी।
+ There are no comments
Add yours