हमास का इतिहास और उत्पत्ति:
हमास की स्थापना 1987 में फिलिस्तीनी इंतिफ़ादा के नाम से हुई थी, जिसका मूल उद्देश्य इज़राइल के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष छेड़ना और फिलिस्तीन को आज़ाद कराना था। यह मूल रूप से गाजा पट्टी के इस्लामवादी समूहों का संगठन था जिसे मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन प्राप्त था।
हमास के संस्थापक शेख अहमद यासीन, अब्दुल अज़ीज़ अल रंतिसी और मोहम्मद तहा जैसे लोग थे जो मूल रूप से मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े थे। ये लोग फिलिस्तीनी राष्ट्रवाद के कट्टर समर्थक थे और इज़राइल के विरुद्ध हिंसा को जायज़ मानते थे।
1980 के दशक में इज़राइल द्वारा फिलिस्तीनी इलाकों पर कब्ज़े के विरोध में प्रदर्शन हुए जिनमें ब्रदरहुड के सदस्यों ने बड़ी भूमिका निभाई। धीरे-धीरे ब्रदरहुड का कट्टर तत्व हमास के नाम से सामने आया और एक संगठित रूप लेने लगा।
दिसंबर 1987 में हमास की आधिकारिक घोषणा की गई और 1988 में इसने अपना चार्टर जारी किया। चार्टर में इज़राइल के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हुए पूरे फिलिस्तीन पर कब्ज़ा करने का लक्ष्य रखा गया था। यह एक कट्टरपंथी इस्लामवादी दस्तावेज़ था जिसने हमास को वैचारिक रूप से परिभाषित किया।
शुरुआत में हमास ने अपना प्रभाव गाज़ा तक ही सीमित रखा लेकिन धीरे-धीरे वेस्ट बैंक और अन्य फिलिस्तीनी इलाकों में भी फैलने लगा। 1990 के दशक में इज़राइल के ख़िलाफ़ हिंसक आत्मघाती हमलों को अंजाम देकर हमास ने खुद को मजबूत किया।
2000 के बाद हमास ने अपना फोकस राजनीतिक ताकत बनने पर किया और 2006 में फिलिस्तीनी चुनाव जीतकर सत्ता में आया। आज फिलिस्तीन में हमास का काफी प्रभाव है और यह इज़राइल के प्रमुख विरोधी के रूप में उभरा है। इसका उग्रवादी इतिहास और वर्तमान में इसकी दोहरी भूमिका हमेशा विवाद का विषय रही है।
हमास की विचारधारा और संविधान:
ठीक है, यहां हमास की विचारधारा और संविधान पर एक लेख है:
हमास की विचारधारा काफी हद तक इस्लामवादी और अतिवादी है। इसकी स्थापना एक इस्लामवादी संगठन फिलिस्तीनी इस्लामी जिहाद के रूप में 1987 में हुई थी।
हमास ने 1988 में अपना चार्टर या संविधान अपनाया जिसमें इसके उद्देश्य और विचारधारा को स्पष्ट किया गया। इस चार्टर में इज़राइल के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया गया और इसे पूरी तरह नष्ट करने की बात कही गई।
चार्टर के मुताबिक हमास का लक्ष्य संपूर्ण फिलिस्तीन पर इस्लामी शासन स्थापित करना है। इसमें इज़राइल से सशस्त्र संघर्ष द्वारा फिलिस्तीन को मुक्त कराने की बात कही गई। चार्टर में यहूदियों के ख़िलाफ़ घृणा भरी भाषा का इस्तेमाल किया गया।
हमास की विचारधारा के केंद्र में इस्लाम, फिलिस्तीनी राष्ट्रवाद और इज़राइल-विरोधी भावनाएं हैं। यह ख़ुद को फिलिस्तीन का एकमात्र प्रतिनिधि मानता है और फतह जैसे अन्य संगठनों को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है।
हालांकि 2000 के बाद हमास ने अपने कुछ कट्टरपंथी नज़रियों में नरमी दिखाई है लेकिन निशाना इज़राइल पर ही है। इसका चार्टर आज भी हमास के लिए केंद्रीय दस्तावेज़ है।
हमास का सियासी पक्ष:
हमास का राजनीतिक पंख इसकी गतिविधियों का एक अहम हिस्सा है। यह फिलिस्तीन के विभिन्न चुनावों में भाग लेता है और विधायिका में अपना प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
2006 में हुए फिलिस्तीनी विधानसभा चुनावों में हमास ने शानदार जीत हासिल की थी। इसने इन चुनावों में 74 सीटें जीतीं जो 132 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत था। चुनाव जीतने के बाद हमास ने फिलिस्तीन के प्रशासन में अहम भूमिका निभाई।
हमास का राजनीतिक पंख इसराइल सरकार से बातचीत में भाग लेने को तैयार रहा है, हालांकि शर्तों पर असहमति है। यह मानता है कि फिलिस्तीन के लिए सशस्त्र संघर्ष और राजनीतिक संघर्ष दोनों ज़रूरी हैं।
हमास का राजनीतिक पंख खालिद मशाल के नेतृत्व में काम करता है जो वर्तमान में इसका प्रमुख नेता है। मशाल फिलिस्तीन के पूर्व प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं। राजनीतिक पंख के माध्यम से हमास फिलिस्तीन की राजनीति में सक्रिय और प्रभावशाली है
हमास का सशस्त्र पक्ष:
हमास का सशस्त्र पंख ‘इज़्ज़ अद-दीन अल-क़साम’ के नाम से जाना जाता है। यह हमास की सैन्य शाखा है जो इज़राइल के ख़िलाफ़ सशस्त्र संघर्ष में लगी हुई है।
इज़्ज़ अद-दीन अल-क़साम की स्थापना 1991 में हुई थी। इसका गठन हमास के कुछ कट्टर सदस्यों द्वारा किया गया था जो इज़राइल के ख़िलाफ़ उग्रवादी कार्रवाई करना चाहते थे।
इज़्ज़ अद-दीन अल-क़साम ने 1990 के दशक से इज़राइल के ख़िलाफ़ कई आत्मघाती बम हमले और रॉकेट हमले किए हैं। यह गाज़ा पट्टी के भीतर से ही अपने मिसाइल हमले करता है।
इज़्ज़ अद-दीन अल-क़साम के पास हज़ारों सशस्त्र सदस्य हैं और यह गाज़ा पर हमास के कब्ज़े के बाद से और मजबूत हुआ है। इसके प्रमुख कमांडरों में अहमद जबारी, मोहम्मद दफ आदि शामिल हैं।
इज़राइल द्वारा हमास के सशस्त्र पंख को आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है और इसे निशाना बनाने की कोशिशें जारी हैं। हालांकि यह फिलिस्तीन में काफी लोकप्रिय है।
हमास का रिश्ता इस्राइल के साथ:
हमास और इज़राइल के बीच के संबंध शुरुआत से ही शत्रुतापूर्ण रहे हैं। इज़राइल को अस्वीकार करने वाली हमास की स्थापना ही इसी उद्देश्य से हुई थी।
हमास ने गठन के बाद से ही इज़राइल के विरुद्ध आत्मघाती बम हमले और रॉकेट हमले किए हैं जिनमें इज़राइली नागरिकों की बड़ी संख्या में मौत हुई है।
इज़राइल भी हमास पर बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई कर चुका है। इसने हमास के नेताओं और सदस्यों को निशाना बनाया है। 2014 में इज़राइल ने गाजा पट्टी पर व्यापक बमबारी की थी।
हमास इज़राइल को लेकर किसी भी शांति वार्ता में शामिल होने से इनकार करता है क्योंकि वह इसे मान्यता देना नहीं चाहता। इज़राइल भी हमास को आतंकवादी संगठन मानता है।
दोनों के बीच विश्वास की भारी कमी है और इस संघर्ष ने उनके बीच की खाई को और गहरा कर दिया है। शांति की संभावना तभी संभव है जब दोनों पक्ष एक-दूसरे को स्वीकार करें।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण में हमास:
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमास को लेकर दोहरा रुख रहा है।
अमेरिका, इजरायल के साथ मित्रता रखने वाले अन्य पश्चिमी देश और यूरोपीय संघ जैसे संगठन हमास को आतंकवादी संगठन मानते हैं। उनकी नज़र में हमास के आत्मघाती हमले निंदनीय हैं।
लेकिन कुछ अरब देश जैसे कि ईरान, तुर्की और कतर ने हमास का समर्थन किया है। ये देश फिलिस्तीन के पक्ष में हैं और हमास को इसका प्रतिनिधि मानते हैं। फिलिस्तीन में भी हमास को काफ़ी समर्थन हासिल है।
संयुक्त राष्ट्र में कुछ देश हमास पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं लेकिन अन्य इसका विरोध करते हैं। हमास का यह द्विभाजित दृष्टिकोण इसके उग्रवादी तेवर के साथ-साथ इसके कल्याणकारी कार्यों के कारण भी है।
पूरे विश्व में हमास को लेकर एकरूपता न होने से इसपर कोई अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनाना मुश्किल है। लेकिन शांति के लिए इसके आतंकवादी पहलू को रोकना ज़रूरी है।
फ़िलिस्तीनी इलाकों पर हमास के प्रभाव
हमास की गतिविधियों और इज़राइल के जवाबी कार्रवाई से फ़िलिस्तीनी इलाकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
गाजा पट्टी पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। इज़राइल द्वारा गाजा पर लगाया गया नाकाबंदी आम जनजीवन को प्रभावित कर रहा है। बेरोज़गारी, गरीबी और भुखमरी फैली हुई है।
पश्चिमी तट पर भी इज़राइल के कड़े प्रतिबंधों के कारण आर्थिक स्थिति खराब हुई है। फिलिस्तीनियों को आवाजाही में परेशानी होती है।
हमास के रॉकेट हमलों के जवाब में इज़राइल की वायु हमलों से नागरिक नुक़सान भी हुआ है। इससे फिलिस्तीन में विस्थापन और शरणार्थी संकट बढ़ा है।
कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने मानवाधिकारों के हनन की आशंका जताई है। समग्र रूप से, फिलिस्तीनी जनता इस संघर्ष से बुरी तरह प्रभावित हुई है।
हमास की सामाजिक और कल्याणकारी गतिविधियाँ
हमास फिलिस्तीनी इलाकों में विभिन्न सामाजिक और कल्याणकारी गतिविधियाँ करता है जिससे उसे वहां काफी लोकप्रियता मिली है।
हमास स्कूल, अस्पताल, मस्जिदें और अनाथालय जैसी सुविधाएं चलाता है। यह गरीबों और ज़रूरतमंदों को आर्थिक मदद भी करता है।
हमास का जन-सहयोग विभाग लोगों को रोजगार की सुविधा मुहैया कराता है। यह खाद्य सहायता, चिकित्सा देखभाल और आपदा राहत भी प्रदान करता है।
हमास ने फिलिस्तीन में एक पूरे सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क का निर्माण किया है। यह न केवल आतंकवादी संगठन है बल्कि एक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन भी।
अपने कल्याणकारी कार्यों से हमास ने फिलिस्तीनियों का विश्वास और समर्थन हासिल किया है। यह उसकी लोकप्रियता का एक बड़ा कारण है।
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के संदर्भ में हमास
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में हमास एक केंद्रीय भूमिका निभाता है। यह सबसे बड़ा फिलिस्तीनी संगठन बन गया है जो इज़राइल का सबसे कट्टर विरोधी है।हमास 1987 में ही इज़राइल का विरोध करने के लिए स्थापित किया गया था। इसका चार्टर इज़राइल के अस्तित्व को ही नकारता है। यह इज़राइल से सशस्त्र संघर्ष द्वारा फिलिस्तीन को मुक्त कराना चाहता है।हमास ने इज़राइल के खिलाफ आत्मघाती बम हमले और रॉकेट से किए गए हमलों का इस्तेमाल अपने संघर्ष का हथियार बनाया है। वहीं इज़राइल ने भी हमास के ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं।हमास ने राजनीतिक रूप से भी फिलिस्तीन में अपनी उपस्थिति दर्ज की है और 2006 में सत्ता में आया। फिलिस्तीन का भविष्य हमास के बिना अधूरा है।
यद्यपि हमास के कट्टरपंथी रुख ने समस्या को जटिल बनाया है, फिर भी इसे शांति प्रक्रिया में शामिल करना ज़रूरी है।हमास की चुनौतियों और भविष्य के परिदृश्य
हमास के सामने कई चुनौतियाँ हैं। इसे अपने कट्टरपंथी रुख से समझौता करना होगा और राजनीतिक रूप से परिपक्व होना होगा।
हमास को अपनी हिंसक छवि सुधारनी होगी ताकि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य हो सके। इसे शांति प्रक्रिया में भाग लेना होगा।
हमास को इज़राइल के अस्तित्व को स्वीकार करना होगा भले ही वह धीरे-धीरे ही क्यों न हो। इज़राइल के साथ समझौता इसकी सबसे बड़ी चुनौती है।
फिलिस्तीन के भीतर राजनीतिक एकता स्थापित करना भी महत्वपूर्ण है। हमास का भविष्य फिलिस्तीन के लोगों पर निर्भर करेगा।
यदि हमास परिपक्व राजनीतिक दल के रूप में उभरता है तो फिलिस्तीन का नेतृत्व कर सकता है। लेकिन इसके लिए इसे अपना कट्टरपन त्यागना होगा और वार्ता के रास्ते पर चलना होगा।
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