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भारत के विदेशी मुद्रा भंडार: एक समग्र अध्ययन

परिचय

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) देश की आर्थिक स्थिति का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। यह विदेशी मुद्राओं, सोने के भंडार, सरकारी ट्रेजरी बिल्स, और अन्य वित्तीय संपत्तियों का संग्रह होता है। भारत के पास बहुत विशाल विदेशी मुद्रा भंडार है, जो भारत सरकार की आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने में मदद करता है। विदेशी मुद्रा भंडार का मुख्य उद्देश्य व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाना है, साथ ही विदेशी मुद्रा बाजार की नियमितता बनाए रखना है।

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा प्रबंधित किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से अमेरिकी डॉलर (USD) सहित यूरो, जापानी येन, और ब्रिटिश पाउंड जैसे प्रमुख विदेशी मुद्राओं का समावेश होता है। यह भंडार देश की मुद्रा (भारतीय रुपया) के लिए सुरक्षा कवच प्रदान करता है और आर्थिक मंदी के समय काम आता है।

विदेशी मुद्रा भंडार का महत्व

विदेशी मुद्रा भंडार भारत की विदेशी भुगतान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है। यह भारतीय रुपया के अवमूल्यन को रोकने में भी मदद करता है, खासकर तब जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कोई संकट उत्पन्न हो। विदेशी मुद्रा भंडार का एक बड़ा हिस्सा RBI के पास होता है, जो इसे रणनीतिक रूप से संचित और निवेशित करता है।

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की संरचना

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को चार प्रमुख घटकों में बांटा जा सकता है:

  1. विदेशी मुद्रा संपत्तियाँ (FCA)
    विदेशी मुद्रा संपत्तियाँ (Foreign Currency Assets) भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा हैं। यह संपत्तियाँ भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा खरीदी जाती हैं और मुख्यतः अमेरिकी ट्रेजरी बिल्स और अन्य विदेशी सरकारी प्रतिभूतियों में निवेशित होती हैं। मार्च 2021 तक, FCA का कुल मूल्य 536.69 बिलियन डॉलर था।
  2. सोना
    भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का दूसरा प्रमुख घटक सोना है। भारतीय रिजर्व बैंक के पास मार्च 2021 तक 695.31 मीट्रिक टन सोना था, जिसमें से 403.01 मीट्रिक टन बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के पास रखा गया है। शेष सोना भारत में ही रखा गया है।
  3. विशेष आहरण अधिकार (SDRs)
    विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा 1969 में बनाए गए थे। ये एक अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति हैं, जो सदस्य देशों के आधिकारिक भंडार को पूरा करने के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। भारत को IMF से SDR के रूप में आवंटन मिलता है, जो विदेशी मुद्रा भंडार का एक हिस्सा बनता है।
  4. रिजर्व ट्रांज पोजीशन
    रिजर्व ट्रांज पोजीशन (Reserve Tranche Position) SDR का एक हिस्सा है जिसे RBI द्वारा विदेशी मुद्रा लेन-देन में उपयोग किया जा सकता है। यह IMF द्वारा निर्धारित सीमा के अनुसार उपयोग में आता है।

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार ने पिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी है। 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद, भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए। इसके परिणामस्वरूप भारत ने अब तक का सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार हासिल किया है।

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट और इसके कारण

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2022 में एक महत्वपूर्ण गिरावट से गुजर चुका है। मार्च 2022 में, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 9.646 बिलियन डॉलर की कमी आई। इस गिरावट का मुख्य कारण बढ़ते कच्चे तेल की कीमतें और रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव था। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस गिरावट को नियंत्रित करने के लिए डॉलर की बिक्री की थी, जिससे रुपये के मूल्य को 77 प्रति डॉलर तक गिरने से रोका गया।

विदेशी मुद्रा भंडार का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

विदेशी मुद्रा भंडार का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ता है। यह मुख्य रूप से निम्नलिखित तरीकों से प्रभाव डालता है:

  1. आयात भुगतान की सुरक्षा
    विदेशी मुद्रा भंडार भारत के आयात भुगतान को पूरा करने के लिए एक सुरक्षात्मक कवच प्रदान करता है। यह भारत को किसी भी आर्थिक संकट या आपूर्ति श्रृंखला संकट के समय आयात करने में सक्षम बनाता है।
  2. रुपये की स्थिरता
    जब भारतीय रुपया अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में अवमूल्यन की ओर बढ़ता है, तो भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करके रुपये को स्थिर बनाए रखने की कोशिश करता है।
  3. आर्थिक स्थिरता
    विदेशी मुद्रा भंडार देश की आर्थिक स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भारत को विदेशों से ऋण लेने में मदद करता है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निवेशकों का विश्वास बनाए रखता है।

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार और वैश्विक स्थिरता

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार ने वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को मजबूत किया है। भारत वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े विदेशी मुद्रा भंडार वाले देशों में से एक है। 2021 में, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 20.5% तक पहुंचने का ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया।

विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी के फायदे

  1. आर्थिक आत्मनिर्भरता
    विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने से भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है। यह सरकार को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद करता है।
  2. रुपये के मूल्य में स्थिरता
    विदेशी मुद्रा भंडार के माध्यम से, भारतीय रिजर्व बैंक रुपये के मूल्य को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में स्थिर रख सकता है, जिससे मुद्रा स्फीति और मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है।
  3. अंतर्राष्ट्रीय विश्वास
    मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार के कारण अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों में भारत के प्रति विश्वास बढ़ता है, जिससे विदेशी निवेश बढ़ता है और भारतीय अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।

निष्कर्ष

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार न केवल देश की आर्थिक सुरक्षा का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की जाने वाली मौद्रिक नीतियों का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह भारतीय रुपया की स्थिरता, आयात भुगतान और आर्थिक आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करता है। भविष्य में, भारतीय रिजर्व बैंक को विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन में सतर्कता बनाए रखते हुए इसे और अधिक बढ़ाने के लिए उचित कदम उठाने होंगे। विदेशी मुद्रा भंडार के लगातार बढ़ने से भारत की वैश्विक स्थिरता और आर्थिक शक्ति को और अधिक सुदृढ़ किया जा सकता है।

Twinkle Pandey

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