चीन, आज के समय में, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (क्रय शक्ति समानता या PPP के संदर्भ में) और नाममात्र के आधार पर दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसका आर्थिक विकास और परिवर्तन पिछले कुछ दशकों में एक प्रेरणादायक कहानी रही है। इस लेख में, हम चीन की अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं जैसे इसके व्यापार ढांचे, आर्थिक नीतियों, और वैश्विक व्यापार में इसकी भूमिका का गहन विश्लेषण करेंगे।
चीन की अर्थव्यवस्था ने 1970 के दशक के अंत में शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद गरीबी और आर्थिक स्थिरता से उभरकर समृद्धि और आर्थिक परिवर्तन का एक नया दौर देखा।
डेंग जियाओपिंग के नेतृत्व में चीन ने एक केंद्रीकृत योजना वाली अर्थव्यवस्था से बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाए। यह परिवर्तन देश के आर्थिक परिदृश्य को बदलने वाला साबित हुआ।
हाल के वर्षों में, चीन एक धीमी वृद्धि के चरण में प्रवेश कर रहा है। यह बदलाव एक विकासशील देश से एक विकसित और परिपक्व अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के कारण हुआ है।
चीन की आर्थिक नीतियां इसकी अभूतपूर्व सफलता के पीछे प्रमुख कारण रही हैं। 1979 के बाद से, चीन ने लगभग 9% की वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर्ज की है।
शुरुआत में, चीन ने सोवियत शैली की भारी औद्योगिकीकरण नीति अपनाई। हालांकि, समय के साथ, उसने बाजार-आधारित सुधारों को अपनाया, जिसने उसकी अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बना दिया।
आज, चीन की अर्थव्यवस्था “समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था” के तहत संचालित होती है, जहां बाजार संसाधन आवंटन में निर्णायक भूमिका निभाता है।
चीन के आर्थिक विकास का मुख्य आधार उसका व्यापार ढांचा है। वैश्विक व्यापार में इसकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है।
चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है और इसका व्यापार अधिशेष काफी मजबूत है।
चीन के आयात में मुख्य रूप से कंप्यूटर, अर्धचालक, ईंधन, और रसायन शामिल हैं।
चीन ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में हस्ताक्षर किए हैं, जो 30% वैश्विक अर्थव्यवस्था को कवर करने वाला अब तक का सबसे बड़ा व्यापार समझौता है।
अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध और यूरोपीय संघ के साथ बिगड़ते संबंधों के बावजूद, चीन का व्यापार ढांचा बाहरी दबावों के प्रति बेहद लचीला साबित हुआ है। यह उसकी रणनीतिक व्यापार नीतियों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में उसकी गहरी भागीदारी को दर्शाता है।
चीन की राजकोषीय नीति उसके आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत आधार रही है।
खुली अर्थव्यवस्था के पहले, चीन की राजकोषीय नीति पूरी तरह से राज्य के नियंत्रण में थी। राजस्व और व्यय योजनाबद्ध थे और बाजार की भूमिका नगण्य थी।
2008 के बाद से चीन ने “सक्रिय राजकोषीय नीति” अपनाई है।
चीन वैश्वीकरण से लाभ उठाने में पूरी तरह सफल रहा है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में चीन का वस्तु निर्यात $2590.2 बिलियन था। सेवाओं के निर्यात ने भी $278 बिलियन को छू लिया।
चीन ने व्यापार को अपनी अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए एक हथियार के रूप में उपयोग किया है।
चीन और भारत एशिया के दो बड़े आर्थिक दिग्गज हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध हाल के दशकों में काफी विकसित हुए हैं।
चीन न केवल एक आर्थिक शक्ति है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक प्रभाव भी विश्व स्तर पर देखा जा सकता है।
कुछ अनुमानों के अनुसार, चीन अगले कुछ दशकों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ सकता है।
हालांकि, चीन को धीमी आर्थिक वृद्धि और विकसित अर्थव्यवस्था के साथ आने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
चीन ने गरीबी और स्थिरता से दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने तक की यात्रा तय की है।
चीन की आर्थिक सफलता उन देशों के लिए प्रेरणा है जो आर्थिक सुधार और विकास की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। यह दिखाता है कि सही नीतियों और व्यापार रणनीतियों के साथ, एक देश वैश्विक मंच पर कैसे अपनी पहचान बना सकता है।
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