भारत में कृषि क्षेत्र हमेशा से ही राजनीतिक बहस और नीतिगत सुधारों के केंद्र में रहा है। किसानों की कर्जमाफी से लेकर कृषि कानूनों तक, हर पहल सरकार और किसानों के बीच संवाद की आवश्यकता पर जोर देती है। यह लेख उत्तर प्रदेश में 2017 में भाजपा सरकार द्वारा कर्जमाफी के निर्णय और भारत में कृषि सुधारों के महत्व को समझने का प्रयास करेगा।
2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में छोटे और सीमांत किसानों के ₹1,00,000 तक के कर्ज माफ करने का वादा किया। चुनाव जीतने के बाद, भाजपा सरकार ने अपने पहले ही कैबिनेट बैठक में इस वादे को पूरा किया। इस निर्णय से लगभग 21 मिलियन किसानों को राहत मिलने की उम्मीद जताई गई। साथ ही, सरकार ने 700,000 किसानों के ₹5,630 करोड़ के गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPAs) माफ करने का भी फैसला लिया। इन दोनों निर्णयों के लिए सरकार को कुल ₹36,459 करोड़ खर्च करने पड़े।
इस निर्णय ने एक तरफ किसानों को राहत दी, लेकिन दूसरी तरफ राज्य की वित्तीय स्थिति को खराब किया। इतिहास गवाह है कि राज्य सरकार द्वारा बैंक को मुआवजा समय पर नहीं मिल पाता है, जिससे बैंकों की स्थिति और बिगड़ जाती है। इसके अतिरिक्त, ऐसी नीतियां जो अल्पकालिक राहत देती हैं, दीर्घकालिक प्रभावों के लिए नाकाफी साबित होती हैं।
केंद्र सरकार द्वारा 2020 में लाए गए तीन कृषि कानूनों ने किसानों और सरकार के बीच गहरे मतभेद उत्पन्न किए। हालांकि, सरकार ने किसानों से संवाद शुरू किया, लेकिन यह संवाद कानून लागू होने से पहले होना चाहिए था। किसानों के विरोध को देखते हुए दिसंबर 2020 में सरकार ने कानूनों में संशोधन और इन्हें 18 महीने तक निलंबित रखने का प्रस्ताव दिया।
तीन कृषि कानूनों का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक सुधार लाना था। लेकिन, राज्यों ने पिछले 15 वर्षों में कृषि बाजारों में सुधार शुरू कर दिए थे। इस दृष्टिकोण से, इन कानूनों की मौजूदा रूप में आवश्यकता पर सवाल उठते हैं। सरकार का यह कदम किसानों के साथ विश्वास बहाल करने और बातचीत का अनुकूल वातावरण बनाने की दिशा में मददगार साबित हो सकता है।
कर्जमाफी किसानों के संकट को कुछ समय के लिए कम कर सकती है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है। इसके बजाय, किसानों को उर्वरक, बीज, उपकरण, सिंचाई और भंडारण सुविधाएं मुफ्त में प्रदान करना अधिक फायदेमंद होगा।
भारत में कृषि क्षेत्र, जो 50% से अधिक श्रमबल को रोजगार देता है, देश के सकल घरेलू उत्पाद में केवल 17% का योगदान देता है। कृषि उत्पादकता बढ़ाकर सरकार लगभग आधे श्रमबल के जीवन स्तर में सुधार कर सकती है। इसके लिए पूंजी निर्माण, मानसून पर निर्भरता कम करना, भूमि विकास, सुनिश्चित बिजली आपूर्ति और बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
सरकार को अन्य क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने पर ध्यान देना चाहिए, जिससे अतिरिक्त श्रमबल कृषि से इन क्षेत्रों में स्थानांतरित हो सके। यह कदम कृषि क्षेत्र पर दबाव कम करेगा और आर्थिक विकास को गति देगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 सितंबर 2015 को आयरलैंड का दौरा किया। यह यात्रा 1956 में जवाहरलाल नेहरू की यात्रा के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी। इस दौरे का उद्देश्य भारत और आयरलैंड के बीच व्यापार, शिक्षा और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना था।
2014 में भारत और आयरलैंड के बीच द्विपक्षीय व्यापार €650 मिलियन था। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के बाद, 2019 तक यह आंकड़ा बढ़कर €1.2 बिलियन हो गया। वर्तमान में, यह व्यापार €4.2 बिलियन के करीब है।
भारत की कई प्रमुख कंपनियां जैसे रिलायंस जेनमेडिक्स, विप्रो, टीसीएस, और एचसीएल आयरलैंड में व्यापार कर रही हैं। इसी प्रकार, कई आयरिश कंपनियां भी भारतीय बाजार में सक्रिय हैं, जिनमें आईटी और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां शामिल हैं।
आयरलैंड भारतीय छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का एक लोकप्रिय गंतव्य बन गया है। वर्तमान में 5000 से अधिक भारतीय छात्र वहां अध्ययन कर रहे हैं। 30 से अधिक शोध समझौते दोनों देशों के संस्थानों के बीच हस्ताक्षरित हुए हैं।
ट्रिनिटी कॉलेज, डबलिन और थापर यूनिवर्सिटी, पटियाला जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों ने इंजीनियरिंग और विज्ञान में कार्यक्रमों के लिए समझौते किए हैं।
आयरलैंड में 45,000 भारतीय मूल के लोग रहते हैं। उनकी उपस्थिति ने दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किया है।
आयरलैंड में दीवाली और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस जैसे कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं। ये कार्यक्रम भारतीय और आयरिश समुदायों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करते हैं।
भारत हर साल 44,000 आयरिश पर्यटकों का स्वागत करता है। इसी प्रकार, आयरलैंड भी भारतीय पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह सहयोग ब्रिटिश-आयरिश वीजा योजना और ई-टूरिस्ट वीजा जैसी पहलों के माध्यम से बढ़ा है।
भारत और आयरलैंड के बीच द्विपक्षीय संबंध प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के बाद मजबूत हुए हैं। कृषि क्षेत्र में सुधार और किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान ढूंढने के लिए सरकार को दीर्घकालिक रणनीतियों पर ध्यान देना होगा।
कर्जमाफी जैसी नीतियां अल्पकालिक राहत देती हैं लेकिन दीर्घकालिक प्रभाव में वे वित्तीय स्थिति को नुकसान पहुंचाती हैं। इसके बजाय, सरकार को कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह न केवल कृषि क्षेत्र को मजबूत करेगा बल्कि भारत को आत्मनिर्भर बनने में भी मदद करेगा।
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