सबसे कम विकसित देशों (LDCs) के लिए वरीयता नियमों पर एक व्यापक लेख

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परिचय

दुनिया के सबसे गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े देशों को “सबसे कम विकसित देश” (LDCs) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ये वे देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था, मानव संसाधन और आधारभूत संरचना इतनी नाजुक होती है कि वे दीर्घकालिक विकास के लिए बड़ी चुनौतियों का सामना करते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्तमान में 48 देशों को LDC के रूप में चिन्हित किया गया है।

LDCs का वैश्विक व्यापार में योगदान बहुत कम होता है। ये देश दुनिया की आबादी का लगभग 12% हिस्सा रखते हैं, लेकिन वैश्विक GDP में इनका योगदान केवल 2% होता है। इसी तरह, LDCs का वैश्विक उत्पाद व्यापार में हिस्सा सिर्फ 1% है, और सेवा व्यापार में तो यह हिस्सा और भी कम है।

LDCs की पहचान और चुनौतियाँ

सबसे कम विकसित देशों की पहचान के लिए कुछ विशेष मापदंड तय किए गए हैं:

  1. वृहद गरीबी: LDCs की आर्थिक स्थिति अत्यधिक कमजोर होती है, जहाँ अधिकांश लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करते हैं।
  2. मानव संसाधन की नाजुकता: इन देशों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के साधनों की अत्यधिक कमी होती है।
  3. आर्थिक संवेदनशीलता: LDCs बाहरी आर्थिक और पर्यावरणीय संकटों से बहुत अधिक प्रभावित होते हैं, जैसे प्राकृतिक आपदाएँ या वैश्विक बाजार के उतार-चढ़ाव।

हर तीन साल में विकास समिति (Committee for Development Policy) इन देशों की स्थिति की समीक्षा करती है और निर्णय लेती है कि कौन से देश LDC की श्रेणी में रहेंगे या इससे बाहर होंगे।

वरीयता नियम (Rules of Origin) क्या हैं?

वैश्विक व्यापार में किसी उत्पाद का उत्पादन कहाँ हुआ है, यह तय करने के लिए वरीयता नियम बनाए जाते हैं। ये नियम यह निर्धारित करते हैं कि कोई उत्पाद व्यापार रियायतों के लिए पात्र है या नहीं। वरीयता नियम यह सुनिश्चित करते हैं कि उत्पाद सही मानदंडों को पूरा कर रहा है ताकि उसे वैश्विक बाजार में विशेष टैरिफ या शुल्क-रियायतें मिल सकें।

LDCs के लिए, यह नियम उनके व्यापारिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। वरीयता नियमों के तहत, LDCs के उत्पादों को वैश्विक बाजारों में प्रवेश के लिए अतिरिक्त सुविधाएँ मिलती हैं, जिससे वे अपनी निर्यात क्षमता को बढ़ा सकते हैं और आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं।

वरीयता और गैर-वरीयता नियम

वरीयता नियम ऐसे नियम होते हैं जो आपसी व्यापार रियायतों (जैसे क्षेत्रीय व्यापार समझौतों) या गैर-आपसी व्यापार रियायतों (जैसे मुक्त व्यापार समझौतों) पर लागू होते हैं। इन नियमों के तहत, LDCs के उत्पादों को टैरिफ या शुल्क में छूट मिलती है।

वहीं, गैर-वरीयता नियम तब लागू होते हैं जब कोई व्यापार रियायत नहीं होती। इसका मतलब है कि व्यापार सामान्य MFN (Most-Favoured Nation) के आधार पर किया जाता है। कुछ देशों में गैर-वरीयता नियमों के लिए विशेष कानून नहीं होते, लेकिन कुछ व्यापारिक नीतियों, जैसे कोटा, एंटी-डंपिंग, या ‘मेड इन’ लेबलिंग के लिए उत्पत्ति निर्धारण की आवश्यकता हो सकती है।

WTO और UNCTAD की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) दोनों ने LDCs को व्यापार में विशेष सहायता और रियायतें प्रदान करने के लिए कई कार्यक्रम और समझौते बनाए हैं।

UNCTAD की स्थापना के समय से ही, उसने LDCs के लिए वरीयता नियमों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। UNCTAD की तकनीकी सहायता, WTO के हांगकांग 2005 के निर्णय के कार्यान्वयन पर केंद्रित रही है, जो LDCs को शुल्क-मुक्त और कोटा-मुक्त बाजार पहुँच प्रदान करता है।

इसके अलावा, WTO के 2013 के बाली सम्मेलन में वरीयता नियमों पर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। इस निर्णय में पहली बार एक बहुपक्षीय रूप से सहमत नियमों का सेट स्थापित किया गया, जो यह सुनिश्चित करता है कि LDCs के उत्पादों को बाजार पहुँच में रियायतें मिल सकें। इसके बाद 2015 में नैरोबी सम्मेलन में, इन नियमों को और स्पष्ट किया गया।

WTO के बाली और नैरोबी निर्णय

बाली निर्णय: 2013 के WTO बाली मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में, सदस्य देशों ने LDCs के लिए वरीयता नियमों पर सहमति जताई। यह निर्णय LDCs के उत्पादों के लिए विशेष बाजार पहुँच सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण था। इस निर्णय के तहत, WTO के सदस्य देशों को यह सिफारिश की गई कि वे LDCs के उत्पादों के लिए वरीयता नियमों में सुधार करें।

नैरोबी निर्णय: 2015 में WTO के नैरोबी सम्मेलन में, बाली निर्णय को और विस्तारित किया गया। इस निर्णय में यह स्पष्ट किया गया कि किसी उत्पाद को “LDC में निर्मित” कैसे माना जा सकता है और कब अन्य स्रोतों से योगदान को उत्पत्ति निर्धारण में जोड़ा जा सकता है। नैरोबी निर्णय में यह भी कहा गया कि सदस्य देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि LDCs के उत्पादों को उनके उत्पादन स्थल पर ही वरीयता मिल सके।

वरीयता नियमों का प्रभाव

LDCs के लिए वरीयता नियम उनके व्यापार और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन नियमों के तहत, LDCs के उत्पादों को टैरिफ और शुल्क में रियायतें मिलती हैं, जिससे उनके उत्पाद वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धी बनते हैं। इससे LDCs की निर्यात आय में वृद्धि होती है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

उदाहरण के लिए, यदि LDCs का एक उत्पाद किसी विकसित देश में निर्यात किया जाता है और उसे टैरिफ-रहित प्रवेश मिलता है, तो उस उत्पाद की कीमत कम हो जाती है, जिससे उसकी मांग बढ़ जाती है। यह स्थिति LDCs की आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देती है और उनके विकास की संभावनाओं को मजबूत करती है।

भविष्य की संभावनाएँ और चुनौतियाँ

भविष्य में, LDCs को वरीयता नियमों का और अधिक लाभ मिल सकता है। WTO और UNCTAD के सहयोग से, LDCs को व्यापारिक अवसरों में वृद्धि हो रही है। लेकिन इसके साथ ही, LDCs को अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने और व्यापार नियमों का पालन करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

हालांकि, LDCs के सामने अभी भी कई चुनौतियाँ हैं। उनमें से एक बड़ी चुनौती उत्पादन क्षमता की कमी है। वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए LDCs को अपने उत्पादों की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करना होगा। इसके अलावा, उन्हें व्यापार नियमों का सख्ती से पालन करना होगा, ताकि वे वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकें।

निष्कर्ष

सबसे कम विकसित देशों (LDCs) के लिए वरीयता नियम वैश्विक व्यापार में उनकी भागीदारी को बढ़ाने और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं। WTO और UNCTAD के सहयोग से, LDCs को व्यापार में विशेष अवसर मिल रहे हैं, जिससे उनके उत्पादों को वैश्विक बाजारों में अधिक प्रतिस्पर्धा मिल रही है।

भविष्य में, यदि LDCs अपने व्यापारिक नियमों का पालन करें और उत्पादन क्षमता को बढ़ाएँ, तो वे वैश्विक व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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