सार्वजनिक भंडारण (Public Stockholding – PSH) एक महत्वपूर्ण नीति साधन है, जिसका उपयोग सरकारें देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए करती हैं। यह उन लोगों के लिए एक जीवनरक्षक नीति साबित होती है, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं और जिन्हें भोजन की कमी का सामना करना पड़ता है। कई देश अपने नागरिकों की भलाई के लिए इस योजना को लागू करते हैं, लेकिन इस नीति को लेकर विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कई विवाद भी रहे हैं। इस लेख में, हम सार्वजनिक भंडारण की परिभाषा, इसकी वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) से जुड़ी चुनौतियों, सब्सिडी के नियमों, ‘पीस क्लॉज’ और हालिया घटनाक्रमों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
सरल शब्दों में, सार्वजनिक भंडारण एक ऐसी सरकारी नीति है, जिसके तहत सरकार किसानों से एक निश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खाद्यान्न खरीदती है और उसे गरीबों में रियायती दरों पर वितरित करती है। यह खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है, खासकर उन देशों के लिए जहां गरीबी और भूख एक बड़ी समस्या है।
👉 मुख्य उद्देश्य:
हालांकि, सार्वजनिक भंडारण प्रणाली को WTO के व्यापार नियमों के तहत कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। WTO का मानना है कि यह नीति वैश्विक व्यापार को बाधित कर सकती है और इससे बाजार में असंतुलन पैदा हो सकता है।
WTO के नियमों के अनुसार, सरकारों को किसानों को दिए जाने वाले खाद्य सब्सिडी की सीमा निर्धारित की गई है। वर्तमान में, विकासशील देशों के लिए यह सीमा कुल उत्पादन मूल्य का 10% और विकसित देशों के लिए 5% निर्धारित की गई है।
👉 भारत के लिए समस्या कहाँ है?
भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह 10% की सीमा भी अपर्याप्त है, क्योंकि भारतीय सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से अनाज खरीदती है और उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से गरीबों को सस्ती दरों पर वितरित करती है।
👉 WTO द्वारा उठाई गई आपत्तियाँ:
भारत और अन्य विकासशील देश WTO से यह मांग कर रहे हैं कि सार्वजनिक भंडारण कार्यक्रमों को “ग्रीन बॉक्स” में डाला जाए, जिससे यह सब्सिडी सीमाओं से बाहर हो जाए और इस पर किसी प्रकार की आपत्ति न हो।
WTO ने कृषि सब्सिडी को तीन अलग-अलग बॉक्सों में विभाजित किया है:
✅ इसमें वे सब्सिडी शामिल होती हैं, जो बाजार को विकृत नहीं करती हैं।
✅ इसमें अनुसंधान और विकास (R&D), कीट नियंत्रण, पशु टीकाकरण, किसानों के लिए प्रशिक्षण आदि शामिल होते हैं।
✅ WTO इस तरह की सब्सिडी पर कोई रोक नहीं लगाता।
⚠️ इसमें वे सब्सिडी आती हैं, जो वैश्विक व्यापार को प्रभावित कर सकती हैं।
⚠️ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), उर्वरक, बिजली, डीजल आदि इस श्रेणी में आते हैं।
⚠️ WTO के अनुसार, इस श्रेणी की सब्सिडी बाजार में असमानता पैदा कर सकती है, इसलिए इस पर सीमाएं लगाई गई हैं।
🔵 यह एम्बर बॉक्स जैसी ही होती है, लेकिन इसमें उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए कुछ नियम होते हैं।
🔵 इस सब्सिडी का उद्देश्य किसानों को उनकी उपज कम करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
🔵 इस तरह की सब्सिडी कुछ विशेष देशों, जैसे आइसलैंड और स्लोवेनिया में लागू होती है।
👉 भारत और अन्य विकासशील देश WTO से यह मांग कर रहे हैं कि सार्वजनिक भंडारण योजनाओं को ग्रीन बॉक्स में स्थानांतरित किया जाए, ताकि यह सब्सिडी की सीमाओं के दायरे से बाहर हो सके।
🌍 वर्ष 2001 में, G33 समूह (47 देशों का एक समूह) ने WTO में मांग की थी कि खाद्य सुरक्षा से जुड़ी सब्सिडी को एम्बर बॉक्स से हटाकर ग्रीन बॉक्स में डाला जाए।
❌ हालांकि, विकसित देशों ने इसका विरोध किया और इस पर सहमति नहीं बन सकी।
🇮🇳 भारत सहित कई विकासशील देशों ने WTO में यह मुद्दा उठाया।
🕊️ WTO ने “पीस क्लॉज” (Peace Clause) की पेशकश की, जिसके अनुसार यदि कोई विकासशील देश 10% से अधिक सब्सिडी देता है, तो WTO के सदस्य देश इस पर आपत्ति नहीं जता सकते।
❌ हालांकि, यह समाधान अस्थायी था और इसे स्थायी समाधान नहीं माना गया।
📢 भारत ने सार्वजनिक भंडारण के लिए स्थायी समाधान की मांग की, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।
🌍 एक नया “स्पेशल सेफगार्ड मैकेनिज्म” (SSM) पेश किया गया, जिससे विकासशील देश विकसित देशों से होने वाले कृषि आयात पर अतिरिक्त कर लगा सकते थे।
❌ हालांकि, सार्वजनिक भंडारण के स्थायी समाधान पर सहमति नहीं बन सकी।
📢 सार्वजनिक भंडारण पर कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया गया।
🚫 WTO ने इस विषय पर कोई प्रगति नहीं दिखाई, जिससे भारत और अन्य विकासशील देश निराश हुए।
📌 भारत में कुल वैश्विक भूखमरी से पीड़ित लोगों का 1/4 हिस्सा निवास करता है।
📌 देश में 80 करोड़ से अधिक लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) पर निर्भर हैं।
📌 कृषि क्षेत्र में 50% से अधिक आबादी रोजगार पाती है।
📌 अगर WTO सार्वजनिक भंडारण पर सख्त नियम लागू करता है, तो इससे गरीबों को मिलने वाले अनाज पर असर पड़ेगा।
👉 भारत की प्रमुख मांग:
सार्वजनिक भंडारण खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसानों को समर्थन देने का एक प्रभावी तरीका है। हालांकि, WTO के मौजूदा नियम विकासशील देशों के लिए इस नीति को लागू करने में कई बाधाएँ पैदा कर रहे हैं। भारत जैसे देशों के लिए यह मुद्दा केवल व्यापार का नहीं, बल्कि गरीबों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा का भी है। इसलिए, WTO को सार्वजनिक भंडारण के लिए एक स्थायी समाधान प्रदान करना चाहिए, ताकि सभी देशों की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके और व्यापार संतुलन भी बना रहे।
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