भारत में कोल ब्लॉक, या कोल माइनिंग, एक महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन है, जिसे सही तरीके से आवंटित किया जाता है ताकि देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सके। कोयला भारतीय उर्जा क्षेत्र का एक मुख्य हिस्सा है और देश की अर्थव्यवस्था में इसका अहम योगदान है। लेकिन, जब कोल ब्लॉक्स के आवंटन में अनियमितताएँ और भ्रष्टाचार घुस आते हैं, तो इसका असर न सिर्फ अर्थव्यवस्था पर बल्कि देश की राजनीतिक स्थिति पर भी पड़ता है। ऐसे ही एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण मामले पर हम बात करेंगे – कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला। इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि कैसे यह घोटाला उभरा, इसके परिणाम क्या रहे, और इसके प्रभाव को किस प्रकार से हमारे समाज और अर्थव्यवस्था ने झेला।
कोल ब्लॉक आवंटन एक प्रक्रिया है जिसके तहत सरकार कोल खनन के लिए किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में कंपनियों को अधिकार देती है। यह अधिकार किसी खदान के संचालन, खनन कार्य, और कोयला निकालने के लिए दिया जाता है। कोल ब्लॉक्स का सही और पारदर्शी आवंटन देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारत में यह प्रक्रिया शुरू में बिना किसी प्रतिस्पर्धा के की जाती थी, जो बाद में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का कारण बनी। कोल ब्लॉक का आवंटन राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा किया जाता है, और यह खास तौर पर सरकारी और निजी कंपनियों के बीच में विभाजित किया जाता है।
कोल ब्लॉक आवंटन का मुद्दा सबसे पहले 1993 में उभरा जब सरकार ने निजी कंपनियों को कोल ब्लॉक्स आवंटित करना शुरू किया। इस दौरान, कोई ठोस और पारदर्शी प्रक्रिया नहीं थी, जिसके कारण बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ। सरकार ने जो 143 कोल ब्लॉक्स सूचीबद्ध किए थे, वह बाद में बढ़कर 216 हो गए। इनमें से कई कंपनियों ने इन ब्लॉक्स का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया, जिससे देश को भारी वित्तीय नुकसान हुआ।
1993 से लेकर 2011 तक, कोल ब्लॉक्स के आवंटन में कई विवाद हुए। सबसे पहले, एक समिति का गठन किया गया था जिसका काम था कैप्टिव माइनिंग के लिए भूमि आवंटन करना। हालांकि, इस समिति के कार्यों में पारदर्शिता की कमी थी, और कई मामलों में निजी कंपनियों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के कोल ब्लॉक्स आवंटित किए गए।
2006 से 2010 के बीच 146 कोल ब्लॉक्स का आवंटन किया गया, लेकिन इनमें से अधिकांश ब्लॉक्स पर काम शुरू नहीं किया गया। यह खनन कार्य स्थगित कर दिए गए थे, जिससे राष्ट्रीय संसाधनों का सही उपयोग नहीं हो सका।
मार्च 2012 में, Comptroller and Auditor General (CAG) ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कोल ब्लॉक आवंटन में अनियमितताएँ और भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ। CAG के अनुसार, सरकार के गलत निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को 10.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। हालांकि, बाद में यह आंकड़ा घटाकर 1.8 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया, लेकिन यह रकम भी भारतीय इतिहास के सबसे बड़े वित्तीय नुकसान के रूप में जानी गई। CAG ने इस रिपोर्ट में यह कहा कि सरकार ने कोल ब्लॉक्स बेचने का अधिकार तो लिया, लेकिन वे यह नहीं तय कर सके कि कौन से ब्लॉक्स को नीलाम किया जाए, जिससे कंपनियों को एक बड़ा फायदा हुआ।
कोल ब्लॉक घोटाले की जांच भारतीय केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा की गई, और 2017 से 2018 के बीच कई अधिकारियों को दोषी ठहराया गया। इसमें कोल सचिव एच.सी. गुप्ता सहित अन्य अधिकारियों को दोषी पाया गया और उन्हें सजा भी सुनाई गई। हालांकि, इस घोटाले की जांच में कई बार आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त प्रमाण नहीं जुटाए जा सके, जिससे मामले लंबित रहे।
आज भी भारत में कोयले की आपूर्ति एक प्रमुख चिंता का विषय बनी हुई है। बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के साथ, कोल स्टॉक में कमी के कारण कई पावर प्लांट्स पर संकट मंडरा रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे, और साथ ही भविष्य में कोल ब्लॉक आवंटन प्रक्रिया को पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी बनाना होगा।
कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका था। इससे न केवल सरकार की नीतियों पर सवाल उठे, बल्कि यह भी दिखाया कि जब प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग नहीं होता, तो वह देश की भविष्यवाणी और समृद्धि पर भारी असर डाल सकता है। अब समय आ गया है कि हम इस घोटाले से सीख लें और एक पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी कोल ब्लॉक नीलामी प्रक्रिया को लागू करें, ताकि भविष्य में इस तरह की गड़बड़ियों से बचा जा सके और देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरी तरह से पूरा किया जा सके।
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